सेबी(SEBI) क्या है और इसका कार्य क्या है? What is Sebi in Hindi

आज हम इस लेख के जरिए sebi kya hai , सेबी क्या है? What is SEBI in Hindi, SEBI कैसे काम करती है? (SEBI) सेबी के कार्य क्या हैं? SEBI सेबी के अधिकार, इन सभी सवालों की जानकारी एक नए निवेशक के पास होना बहुत जरूरी है। तो आइए बिना देरी किए जानते हैं , सेबी क्या है ? क्या आपको पता है शेयर बाजार मे दोनों इंडेक्स की निगरानी कैसे और कौन करता है? हम सब SEBI का नाम तो सुनते ही आ रहे हैं लेकिन इसकी पूरी जानकारी बहुत ही कम लोगों के पास है। इसलिए आज हम आपको पूरी जानकारी देगे

सेबी क्या है? What is Sebi in Hindi

यदि हम मार्केट में कोई भी बिज़नेस करता है या को बिजनेस होता है तो उस बिजनेस को मॉनिटर करने के लिए एक संस्था की जरूरत होती है। जिस प्रकार हमारे भारत में बैंको को मॉनिटर करने के लिए RBI है, उसी तरह शेयर बाजार को मॉनिटर करने के लिए सेबी अस्तित्व में आया।

सेबी के आने से पहले, बाजार में धोखाधड़ी या स्कैम बहुत आम सी बात थी। हम सब या आपने हर्षद मेहता का स्कैम के बारे मे तो सुना ही होगा। की कैसे हर्षद मेहता ने इनसाइडर ट्रेडिंग और ओर भी अन्य इलीगल प्रैक्टिस के जरिए वह स्कैम किया था।

इन सब स्कैम ओर कारणों की वजह से ही, सरकार ने एक संस्था को स्थापित करने का फैसला किया , जो देश में प्रतिभूति बाजार (Securities Market) के नियामक (Regulator) के रूप में काम करता हो।

इसलिए सेबी (SEBI) जिसका हिंदी में नाम भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम (Securities and Exchange Board of India Act),है , के अनुसार वैधानिक निकाय के रूप में लागू किया गया ।

तो अब आपको सेबी के बारे में एक जानकारी मिल गयी है कि सेबी SEBI क्या है? और यह क्यों महत्वपूर्ण ओर इसकी क्यों आवश्यकता पड़ी। चलिए अब जानते है सेबी का पूर्ण रूप क्या है और सेबी के इतिहास से बारे में जानते है।

SEBI सेबी का इतिहास | History of SEBI in Hindi me

सेबी की स्थापना पूरी तरह से दिनाक 12 अप्रैल 1988 की साल में भारत सरकार द्वारा की गई और इसके साथ ही भारतीय संसद द्वारा जारी की गई सेबी अधिनियम, 1992 के साथ 13 जनवरी 1992 में इसको वैधानिक अधिकार दिया गया था।

सेबी का मेन मुख्यालय मुंबई के बांद्रा कुर्ला परिसर के व्यावसायिक जिले में हैं जो की नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और अहमदाबाद में उत्तरी, पूर्वी, दक्षिणी व पश्चिमी क्षेत्रीय कार्यालय हैं।

सेबी से पहले कंट्रोलर ऑफ़ कैपिटल इश्यूज (Controller of Capital Issues) एक नियामक प्राधिकरण (Regulatory Authority) था। इसे कैपिटल इश्यूज़ (कंट्रोल) एक्ट, 1947 के तहत अधिकार दिया गया। शुरुआत में, सेबी बिना किसी वैधानिक शक्ति के एक गैर वैधानिक निकाय था।

सेबी की संरचना

सेबी के संरचना या ढांचे की के बारे मे बात करे तो सेबी के पास एक कॉरपोरेट ढांचा है जिसमें अलग-अलग विभाग शामिल हैं जो एक विभाग प्रमुख द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं। उन विभागों मे से कुछ विभाग इस प्रकार से हैं:

  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक
  • मानव संसाधन
  • सामूहिक निवेश योजनाएं
  • कमोडिटी और डेरिवेटिव मार्केट रेगुलेशन
  • कानूनी मामलों का विभाग
  • निगम वित्त विभाग (Corporation Finance Department (CFD)
  • Department of Economic and Policy Analysis (DEPA)
  • Department of Debt and Hybrid Securities (DDHS)
  • Enforcement Department – 1 (EFD1)
  • Enforcement Department – 2 (EFD2)
  • Enquiries and Adjudication Department (EAD)
  • General Services Department (GSD)
  • Information Technology Department (ITD)
  • Integrated Surveillance Department (ISD)
  • Investigations Department (IVD)
  • निवेश प्रबंधन विभाग (Investment Management Department (IMD))
  • विधि कार्य विभाग (Legal Affairs Department (LAD))
  • Market Intermediaries Regulation and Supervision Department (MIRSD)
  • Market Regulation Department (MRD
  • Office of International Affairs (OIA)
  • Office of Investor Assistance and Education (OIAE)
  • Office of the Chairman (OCH)
  • Regional Offices (RO’s)

सेबी के इस संगठन ढांचे में कुल 9 सदस्य शामिल होते है। जिनमे से एक अध्यक्ष को भारत सरकार द्वारा चुना जाता है। ओर 2 सदस्य केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अधिकारी होते हैं और RBI से 1 सदस्य 5 अन्य सदस्य जिन्हें भी भारत सरकार द्वारा ही चुना जाता है।

सेबी का फुल फॉर्म | Full Form of SEBI

सेबी(SEBI) का फुल फॉर्म (Securities and Exchange Board of India) है। जिसको हिंदी में “भारतीय प्रतिभूति और विनयम बोर्ड” भी कहा जाता है।SEBI को स्थापित करने के पीछे का मुख्य उद्देश्य शेयर बाज़ार को संरक्षण देना और निवेशकों के हितो की रक्षा करना था ।

सेबी के वर्तमान अध्यक्ष कौन हैं? | Who is the present President of SEBI 2022

सेबी के वर्तमान अध्यक्ष श्री अजय त्यागी जी हैं जिन्होंने मार्च 2017 में सेबी का कार्यभार संभाला था । सेबी के अध्यक्ष को केंद्र सरकार के द्वारा नियुक्त किया जाता है हालाँकि, इनका कार्यकाल 1 मार्च 2020 को पूरा हो गया था, लेकिन सरकार ने इनके कार्यकाल को 6 महीने के लिए बढ़ा दिया है।एक सेबी के अध्यछ का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष पूरा होने तक में हो सकते हैं (दोनों में से जो भी पहले पूर्ण हो जाए )। हालाँकि, सरकार ने इनके कार्यकाल को 2 साल कम करने के फैसला किया है।जिससे वर्तमान सेबी अध्यक्ष का कार्यकाल केवल 3 साल तक का है।

SEBI सेबी की स्थापना का उद्देश्य (Objective Of Setting Up SEBI)

सेबी का मेन उद्देश्य भारतीय स्टाक मे निवेशकों के हितों को एक उत्तम व सही सुरक्षा प्रदान करना है औरइसके साथ ही प्रतिभूति बाजार के विकास तथा नियमो को प्रवर्तित करना है। सेबी को एक गैर वैधानिक संगठन के रूप में स्थापित किया गया था जिसे SEBI ACT 1992 के अन्तर्गत वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है।

सेबी के मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार से होते है ;-

शेयर मार्किट पर नज़र रखना।
दलालों पर नियंत्रण
इनसाइडर ट्रेडिंग की जाँच करना
निवेशकों को संरक्षण
स्टॉक एक्सचेंजों का विनियमन

सेबी के कार्य (Functions Of SEBI)

सेबी के मुख्य कार्य निम्न प्रकार से होते है ;-

  • प्रतिभूति बाजार में निवेशको के हितों का संरक्षण तथा प्रतिभूति बाजार को उचित उपायों के माध्यम से विनियमित एवं विकसित करना।
  • Stock Exchange ,Mutual Fund हाउस तथा किसी भी अन्य Securities बाजार के व्यवसाय का नियम तय करना।
  • स्टॉक ब्रोकर्स, सब-ब्रोकर्स, शेयर ट्रान्सफर एजेंट्स, ट्रस्टीज, मर्चेंट बैंकर्स, अंडर-रायटर्स, गोल्ड एक्सचेंज, पोर्टफोलियो मैनेजर आदि के कार्यो का नियमन करना एवं उन्हें पंजीकृत करना।
  • म्यूचुअल फण्ड की सामूहिक निवेश योजनाओ को पंजीकृत करना तथा उनका नियमन करना।
  • पुँजियो के बाजार से सम्बंधित Unfair Trade Practices को समाप्त करना।
  • पूंजी बाजार से जुड़े लोगों को प्रशिक्षित करना तथा निवेशकों की शिक्षा को प्रोत्साहित करना।
  • प्रतिभूतियों की इनसाइडर ट्रेडिंग पर रोक लगाना।

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अर्ध-विधायी शक्तियां

अर्ध-कार्यकारी शक्तियां

अर्ध-न्यायिक शक्तियां

विनियामक कार्य

सेबी के अधिकार ओर सेबी की शक्तियां| Power of SEBI in Hindi

जैसे की हम जानते है की प्रतिभूति कानून का उल्लंघन करने वाले लोग नए तरीके और प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करते हैं, इसलिए उनसे लड़ने के लिए ओर उन्हे पकड़ने के लिए सेबी भी योजनाएं बनाता है। ओर इसलिए सेबी के इन्हीं कार्यों को देखते हुए इनहे कई शक्तियां प्रदान की गई हैं।

SEBI निरीक्षण और अन्य उद्देश्यों के लिए व्यवसाय के लेनदेन के बारे में शेयर बाजारों और बिचौलियों से कभी भी जानकारी ले सकता है।
नियमों का उल्लंघन करने पर यह बिचौलियों और अन्य प्रतिभागियों पर आर्थिक दंड लगा सकता है। यहां तक कि यह उन्हें अल्पावधि के लिए निलंबित भी कर सकता है।
इसके पास इनसाइडर ट्रेडिंग अथवा मर्चेंट बैंकरों के कार्यों को नियमित करने का भी अधिकार है।
कुछ कंपनियों को एक या एक से अधिक शेयर बाजारों में सूचीबद्ध होने के लिए भी यह मजबूर कर सकता है।
दलालों का पंजीकरण करना भी सेबी के कार्यों का ही हिस्सा है।

सेबी के संगठनात्मक संरचना क्या है
सेबी क्या है in hindi 

सेबी वेबसाइट

SEBI Meaning in Hindi
सेबी, सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया, एक नियामक संस्था है, जो सिक्योरिटीज मार्केट में स्टॉक के ट्रांजेक्शन को रेगुलेट करती है।

यह यूएस में सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) ऑपरेटिव के सामान है।

चार्टर के अनुसार, सेबी तीन मुख्य समूहों का जारीकर्ता है:

प्रतिभूतियों (Securities)
निवेशकों (Investors)
बाजार मध्यवर्ती (Market Intermediates)
यह संस्था इन तीनों समूहों को रेगुलेट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

सेबी संगठनात्मक संरचना (Sebi Organizational Structure)

सेबी बोर्ड में कुल नौ सदस्य शामिल हैं:

भारत सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय से दो सदस्य।
भारतीय रिज़र्व बैंक से एक सदस्य।
भारत सरकार द्वारा पांच सदस्यों की नियुक्ति की जाती है। इन पाँच सदस्यों में से तीन सदस्य पूर्णकालिक(फुल-टाइम) सदस्य के रूप में कार्य करते हैं।
सेबी फुल फॉर्म
सेबी का फुल फॉर्म सिक्योरिटी एक्सचेंज एंड बोर्ड ऑफ़ इंडिया होता है। जिसे “भारतीय प्रतिभूति और विनयम बोर्ड” भी कहा जाता है।

सेबी का मुख्य उद्देश्य शेयर बाजार में निवेशकों को सुरक्षा प्रदान करना है। साथ ही, यह संस्था, ट्रेडर्स और निवेशकों को किसी भी प्रकार के धोखाधड़ी और स्कैम के खिलाफ मदद प्रदान करती है।

इसे स्थापित करने के पीछे मुख्य कारण शेयर बाज़ार को संरक्षण देना और निवेशकों के हितो की रक्षा करना था ।

सेबी का इतिहास (Sebi History in Hindi)
यह आधिकारिक तौर पर भारत सरकार द्वारा वर्ष 1988 में स्थापित की गयी थी। वर्ष 1992 में, भारतीय संसद द्वारा सेबी एक्ट 1992 के पारित होने के साथ इसे वैधानिक शक्तियां दी गई थीं।

SEBI का मुख्यालय मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में है। इसके नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और अहमदाबाद में उत्तरी, पूर्वी, दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
सेबी के अस्तित्व में आने से पहले कंट्रोलर ऑफ़ कैपिटल इश्यूज (Controller of Capital Issues) एक नियामक प्राधिकरण (Regulatory Authority) था। इसे कैपिटल इश्यूज़ (कंट्रोल) एक्ट, 1947 के तहत अधिकार दिया गया।
शुरुआत में, सेबी बिना किसी वैधानिक शक्ति के एक गैर वैधानिक निकाय था।
हालाँकि 1995 में, सेबी को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 में संशोधन के माध्यम से भारत सरकार द्वारा अतिरिक्त वैधानिक शक्ति प्रदान की गई थी।
अप्रैल, 1988 में सेबी का गठन भारत सरकार के एक प्रस्ताव के तहत भारत में पूंजी बाजार के नियामक के रूप में किया गया था।
सेबी एक्ट 1992 (Sebi Act 1992)
भारत सरकार ने संसद में सेबी अधिनियम (एक्ट) 1992 पारित किया,जिससे सेबी को गैर-संवैधानिक से संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ।

सेबी एक्ट 1992 के अनुसार, इसमें स्टॉक एक्सचेंज और अन्य प्रतिभूति बाजारों (सिक्योरिटीज मार्केट) के रेगुलेशन को नियंत्रण करने की शक्ति है।

यह स्टॉकब्रोकर, सब-ब्रोकर्स, रजिस्ट्रार, ट्रस्टी, बैंकर्स से एक इश्यू, पोर्टफोलियो मैनेजर और अन्य बिचौलियों के प्रदर्शन को नियंत्रित और ऑडिट भी करता है।

इसके अलावा, यह निम्नलिखित को भी नियंत्रित करता है।

म्युचुअल फंड का पंजीकरण (registration)और विनियमन (regulation),
स्व-नियामक संगठन का प्रचार और नियमन,
धोखाधड़ी गतिविधियों को रोकने,
अनुचित ट्रेड प्रैक्टिस,
कंपनियों का अधिग्रहण और उनके शेयरों का पर्याप्त अधिग्रहण,
निरीक्षण का कार्य,
प्रतिभूति बाजार के स्टॉक एक्सचेंजों, बिचौलियों और स्व-नियामक संगठनों के ऑडिट का संचालन करना।
कैपिटल इश्यू (कंट्रोल)एक्ट, 1947 और सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट (रेगुलेशन) अधिनियम, 1956 के प्रावधान में उल्लिखित सभी कार्यों को करना।
ये भी पढ़े: शेयर बाजार के नियम

सेबी की शक्तियां एवं कार्य (Functions and Power of Sebi in Hindi)
सेबी के पास शेयर बाजार को प्रबंधित करने के लिए कुछ शक्तियां एवं कार्य निर्धारित किये गए है। नीचे सेबी की शक्तियों और कार्य के बारे में बताया गया है।

सेबी के कार्य
सेबी के कार्यों को सेबी एक्ट, 1992 में संवैधानिक निकाय के रूप में इसकी स्थापना के बाद सूचीबद्ध किया गया है। इसकी प्रमुख भूमिका भारत के पूंजी शेयर बाजार में तीन पक्षों (सिक्योरिटीज, ट्रेडर्स और निवेशक, मध्यस्थ) की जरूरतों को पूरा करना है।

सेबी के कार्य को व्यापक रूप से नीचे वर्णित तीन भागों में विभाजित किया गया है:

  1. सुरक्षात्मक कार्य

सेबी के कुछ प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं, जो निवेशकों के लिए एक सुरक्षित और पारदर्शी वातावरण बनाने में मदद करते हैं।

ट्रेडर्स और निवेशकों के हितों की रक्षा
ट्रेडर्स पूंजी बाजार (कैपिटल मार्केट) का आधार होते हैं, इसलिए उनकी प्रमुख जिम्मेदारी अपने हितों की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी निवेशक किसी भी ट्रेड धोखाधड़ी का शिकार न बने।

इसके लिए, यह समय-समय पर कुछ सेमिनार और कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जो ट्रेडर्स और निवेशकों दोनों को शिक्षित करने में मदद करता है और उनको उनके अधिकारों के बारे में बताता है।

मूल्यों में हेराफेरी को सीमित करना
चूंकि सेबी शेयर बाजार में भारी उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए लागू हुआ था। हालांकि, उतार-चढ़ाव वित्तीय बाजार का चलन है, लेकिन कभी-कभी कुछ उतार-चढ़ाव (मूल्य में हेराफेरी) पहले से ही कॉरपोरेट या कॉर्पोरेट समूह द्वारा तय किए गए होते हैं।

इस तरह के उतार-चढ़ाव से निवेशकों खास तौर पर नए निवेशकों को बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है।

मूल्यों में हेराफेरी की घटनाओं को रोकने के लिए सेबी, एक प्रभावी भूमिका निभाता है। इसे रोकने के लिए सेबी ने एक सर्किट शुरू किया है।

दिन के क्लोजिंग के आकड़ों के विश्लेषण पर, सर्किट जिसे थ्रेशोल्ड भी कहा जाता है, सेबी द्वारा परिभाषित किया गया है।

यदि सुरक्षा मूल्य(सिक्योरिटी प्राइस) सर्किट वैल्यू से नीचे चला जाता है, तो सर्किट ब्रेकर की भूमिका सामने आती है और उस विशेष सिक्योरिटी का ट्रेड घंटों या पूरे दिन के लिए रुक जाता है।

इनसाइडर ट्रेडिंग पर नियंत्रण
कंपनी के शेयर की कीमत में उतार-चढ़ाव, पूर्व-घोषणा(Pre-Announcement) या कंपनी के अंदर किसी भी नयी खबर से अत्यधिक प्रभावित होता है।

इस तरह की खबरें आने के बाद, कंपनी के कुछ कर्मचारी कंपनी की सिक्योरिटी को पहले ही बेच देते हैं या खरीद लेते हैं।

इस तरह के ट्रेडिंग को इनसाइडर ट्रेडिंग कहा जाता है। इनसाइडर ट्रेडिंग के उदाहरण लेख की समीक्षा करके आप इनसाइडर ट्रेडिंग के बारे में जानकारी ले सकते हैं।

इसे रोकने के लिए, सेबी लिस्टेड कंपनियों के ट्रस्ट और कर्मचारी कल्याण योजनाओं(employee welfare schemes) को ब्लॉक कर देता है, जो उन्हें सेकेंडरी मार्केट से अपने खुद के शेयर खरीदने से रोकते हैं।

इसके अलावा, सेबी के दिशानिर्देशों के अनुसार, लिस्टेड कंपनियों को अपने कर्मचारियों के सामने लाभ योजनाओं (welfare schemes) को बताना होता है, जिसमें स्टॉक खरीद शामिल है और उन्हें ESOS और ESPS दिशानिर्देशों के अनुसार पंक्तिबद्ध करना होता है।

वित्तीय मध्यवर्ती (Financial Intermediates)
सेबी, शेयर बाजार में मध्यवर्ती निकाय (intermediate body) है, जिसकी जिम्मेदारी बाजार में सभी लेनदेन को सुचारू और सुरक्षित रूप से पूरा करना है।

इस प्रकार, यह पूंजी बाजार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और वित्तीय मध्यस्थ (Financial Intermediate) जैसे ब्रोकर, सब-ब्रोकर आदि की हर गतिविधि पर निगरानी करता है।

  1. विकासात्मक कार्य (Developmental Functions)

यह भारतीय वित्तीय बाजार में नवीनता और रचनात्मकता लाता है। सेबी द्वारा कई विकासात्मक कार्य किए जा रहे हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

वित्तीय बाजार में प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म को लाया गया है ।
सिक्योरिटीज के DEMAT फॉर्म का परिचय
वित्तीय मध्यस्थों के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना।
एक्सचेंज के माध्यम से आईपीओ की अनुमति देना।

  1. विनियामक कार्य (Regulatory Functions)

इसमें कॉर्पोरेट और वित्तीय मध्यस्थों के सेबी उपनियमों(bye-laws) का प्रवर्तन शामिल है। यह स्टॉक मार्केट को सुचारू और पारदर्शी कामकाज को सुनिश्चित करता है।

कुछ नियामक कार्य (Regualtory function) इस प्रकार हैं:

सेबी द्वारा कुछ परिभाषित दिशानिर्देश और आचार संहिता हैं जो वित्तीय मध्यस्थों और कॉर्पोरेट के लिए लागू हैं।
सभी मध्यस्थ, शेयर बाजार के एजेंट, ट्रस्टी आदि सेबी में पंजीकृत होते हैं।
यह म्यूचुअल फंड के कामकाज और कंपनियों के अधिग्रहण को नियंत्रित करता है।
सेबी की अधिकार
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के पास निम्नलिखित तीन शक्तियां होती हैं।

अर्द्धन्यायिक (Quasi-Judicial):
यदि सेबी ट्रेड में किसी भी धोखाधड़ी गतिविधि में आता है, तो उसे SEBI PACL के मामले में सुनवाई करने और निर्णय पारित करने का अधिकार है।

यह पूंजी बाजार के लिए बेहतर पारदर्शिता, निष्पक्षता, जवाबदेही और विश्वसनीयता प्रदान करता है।

अर्द्धविधान (Quasi Legislative)
यह SEBI LODR के एक नियम के अनुसार निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए नियमों और विनियमों का मसौदा तैयार करने की शक्ति रखता है।

सेबी LODR इक्विटी बाजार सहित वित्तीय बाजार के विभिन्न क्षेत्रों के सभी सूचीबद्ध समझौतों के प्रावधान को मजबूत और सुव्यवस्थित करने पर केंद्रित है।

इस प्रकार के विनियमन को धोखाधड़ी या किसी भी प्रकार के कदाचार से बचाने के लिए रखा जाता है।

अर्ध कार्यकारी (Quasi-Executive)
इस अधिकार के तहत नियमों और विनियमों का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ मामला दर्ज करने का पूर्ण अधिकार है।

इसके साथ ही, यह संदिग्ध गतिविधि का सबूत इकट्ठा करने के लिए अकाउंट बुक और अन्य विवरणों की जांच करने का अधिकार रखता है।

Role of SEBI in Hindi
पूंजी बाजार एक वित्तीय प्रणाली का हिस्सा है, जो लंबी अवधि(long-term) के निवेश से निपटने के लिए धन जुटाने के लिए चलाया जाता है।

इसमें दो प्रकार के बाजार शामिल हैं: प्राइमरी मार्केट और सेकेंडरी मार्केट।

प्राइमरी मार्केट का संबंध अधिशेष क्षेत्र(Surplus sector) से सरकार और कॉर्पोरेट के लिए, और बैंकों और गैर-बैंकों के वित्तीय मध्यस्थों के लिए फंड्स के लॉन्ग-टर्म फ्लो से संबंधित है।
सेकेंडरी मार्केट का संबंध बकाया सिक्योरिटीज से है। यह बकाया ऋण और इक्विटी उपकरणों की तरलता(Liquidity) और विपणन(Marketing) क्षमता को सुविधाजनक बनाता है।
यह पूंजी बाजार(Capital Market) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस निकाय की कुछ प्रमुख भूमिकाएँ हैं:

स्टॉक एक्सचेंज को नियंत्रित करने के लिए नियम बनाना: पूंजी बाजार में, सेबी के पास स्टॉक एक्सचेंज पर बेहतर नियंत्रण के लिए नए नियम लाने का पूरा अधिकार है।
डीलरों और ब्रोकर्स को लाइसेंस प्रदान करना: संवैधानिक निकाय उन डीलरों और ब्रोकर्स को लाइसेंस दे सकता है जो पूंजी बाजार का हिस्सा हैं।
पूंजी बाजार में धोखाधड़ी को रोकता है: यह धोखाधड़ी की घटना को रोकने में प्रमुख भूमिका निभाता है। यह उन ब्रोकर्स के ट्रेड पर प्रतिबंध लगा सकता है जो किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी की गतिविधि में शामिल हैं या शेयर बाजार में अनुचित ट्रेड प्रैक्टिस में शामिल हैं।
विलय, अधिग्रहण और टेकओवर को नियंत्रण: यह देखता है कि स्टॉक एक्सचेंज की अन्य कंपनियों के साथ बड़ी फर्म का विलय विकास के उद्देश्य से है या पूंजी बाजार को नुकसान पहुंचाने के लिए है। परिदृश्य के आधार पर, यह आवश्यक कार्रवाई करता है।
स्टॉक मार्केट के प्रदर्शन का ऑडिट करना: पूंजी बाजार के कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए सेबी, विभिन्न स्टॉक एक्सचेंजों के प्रदर्शन का ऑडिट करता है।
आई.सी.ए.आई के साथ संबंध बनाना: कंपनी अकाउंट के बेहतर ऑडिटिंग के लिए, यह आई.सी.ए.आई के साथ अच्छे संबंध बनाने का अधिकार देता है, जो अथॉरिटी कंपनियों के नए ऑडिटर बनाता है।
यह वित्तीय ट्रेड के वास्तविक परिदृश्य की पहचान करने में मदद करता है और इस प्रकार निवेश के संबंध में निर्णय लेने में निवेशकों की मदद करता है।
वोलैटिलिटी इंडेक्स पर डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट को लाना: निवेशकों के जोखिम को कम करने के लिए, सेबी स्टॉक एक्सचेंजों में वोलैटिलिटी इंडेक्स पर डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट पेश करता है।
सेबी चेयरमैन (SEBI Chairman 2020 in Hindi)
वर्तमान में, सेबी के चेयरमैन श्री अजय त्यागी है। सेबी के अध्यक्ष को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।

हालाँकि, इनका कार्यकाल 1 मार्च 2020 को पूरा हो गया था, लेकिन सरकार ने इनके कार्यकाल को 6 महीने के लिए बढ़ा दिया है।

सेबी के अध्यक्ष का कार्यकाल
सेबी के चेयरमैन 5 वर्ष या 65 वर्ष पूरा होने तक कार्यकाल में रह सकते हैं (दोनों में से जो भी पहले पूर्ण हो जाए )। हालाँकि, सरकार ने इनके कार्यकाल को 2 साल कम करने के फैसला किया है।

जिससे वर्तमान सेबी अध्यक्ष का कार्यकाल केवल 3 साल तक का है।

सेबी के दिशा-निर्देश (Sebi Guidelines in Hindi) सेबी के दिशा-निर्देशों
स्टॉक एक्सचेंज जैसे एनएसई, बीएसई आदि के काम में पारदर्शिता लाने के लिए सेबी, प्राथमिक बाजार, आईपीओ, निवेशक सुरक्षा, आदि के लिए अलग-अलग दिशानिर्देश पेश करता है।

यहां स्टॉक एक्सचेंज के विभिन्न कार्यों के लिए प्रमुख दिशानिर्देश दिए गए हैं।

IPO के लिए सेबी दिशा-निर्देश:
कई कंपनियां सार्वजनिक रूप से जाना पसंद करती हैं। यह कई कारणों से हो सकता है जैसे बिज़नेस विस्तार, विविधीकरण, ऋण चुकौती, आदि।

IPO के रूप में कंपनी दाखिल करने के लिए, SEBI ICDR ने कुछ दिशानिर्देश दिए हैं, जिनकी चर्चा नीचे की गई है।

1.Entry Norm I: लाभप्रदता मार्ग (Profitability Route)

आईपीओ के रूप में प्रवेश करने के लिए, कंपनी को नीचे दिए गए मानदंडों को पूरा करना चाहिए:

कंपनी के पास लगातार तीन वर्षों तक 1 करोड़ रुपये का नेट वर्थ होना चाहिए।
नेट वास्तविक संपत्ति(tangible assets) लगातार तीन वर्षों तक 3 करोड़ से कम नहीं चाहिए।
पिछले तीन से पांच वर्षों में औसतन 15 करोड़ का लाभ।
सुनिश्चित करें कि इशू साइज (Issue Size) का आकार प्री-इशू वर्थ (pre-issue worth) के पांच गुना से अधिक नहीं होना चाहिए।

  1. Entry Norm II: QIB Route

यदि कंपनी विस्तार करने के लिए तैयार है, लेकिन ऊपर बताये गए किसी भी दिशानिर्देश को पूरा करने में विफल है, तो सेबी कुछ विकल्पों के साथ आता है।
इस गाइडलाइन के अनुसार, कंपनी बुक बिल्डिंग प्रक्रिया के माध्यम से जनहित तक एक्सेस प्राप्त कर सकती है यानी विशिष्ट प्राइस बैंड के साथ एक शेयरधारक से बिडिंग को रेगुलेट कर सकता है। यह शेयर मूल्य निर्धारित करने में मदद करता है।
इसके कुल नेट ऑफर का 75% अर्हताप्राप्त संस्थागत क्रेता (Qualified Institutional Buyer) को आवंटित किया जाएगा।
यदि QIB का न्यूनतम सदस्यता मूल्य पूरा नहीं होता है, तो कंपनी सदस्यता शुल्क वापस कर देगी।

  1. अन्य दिशानिर्देश

कंपनी को आईपीओ के रूप में दायर करने के लिए कंपनी को ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस के रूप में जाना जाने वाला ड्राफ्ट ऑफर डॉक्यूमेंट सेबी को दाखिल करना आवश्यक है।
ड्राफ्ट में कंपनी की संपर्क जानकारी, जोखिम से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारी, जोखिम के प्रति कंपनी की प्रतिक्रिया और कंपनी के नेतृत्व का विवरण शामिल है।
सेबी ड्राफ्ट की समीक्षा करता है और फिर अंतिम अवलोकन पत्र (overview letter) जारी करता है।
किसी मामले में, कंपनी आईपीओ यानी बुक-बिल्डिंग प्रक्रिया को दर्ज करने का वैकल्पिक तरीका चुनती है, सेबी अंतिम अवलोकन पत्र जारी करने के लिए 12 महीने की अवधि लेता है।
आईपीओ के रूप में फाइल करने वाली कंपनी के पास प्रमोटर या कंपनी के किसी भी दायित्व के बिना स्वतंत्र निवेशक के रूप में बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर की आधी सदस्यता होनी चाहिए। यह अल्पमत शेयरधारकों के हित को सुरक्षित रखने में मदद करता है।
एक कंपनी जो 100 करोड़ रुपये के इशू के लिए फाइल करती है, उसे सेबी के क्षेत्रीय कार्यालयों में ड्राफ्ट ऑफर डॉक्यूमेंट दाखिल करना चाहिए।
प्राथमिक बाजार के लिए सेबी के दिशानिर्देश:
प्राथमिक बाजार के लिए सेबी के दिशानिर्देश निम्नलिखित हैं:

नई कंपनी: नई कंपनी, जिसने 12 महीने के कमर्शियल ऑपरेशन को पूरा नहीं किया है, उसे प्रीमियम पर शेयर के मुद्दे में शामिल होने की अनुमति नहीं होती है।
मौजूदा कंपनी द्वारा स्थापित नई कंपनी: कम से कम 5 वर्षों के लिए लाभ के संदर्भ में एक अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड के साथ कोई भी पुरानी कंपनी यदि किसी भी नई कंपनी को बढ़ावा देती है, तो नई कंपनी को अपने इश्यू की कीमत लगाने की अनुमति होती है।
प्राइवेट और क्लोज़ली हेल्ड कंपनियाँ: प्राइवेट और क्लोज़ली हेल्ड कंपनियाँ जिनके पास कम से कम तीन वर्षों के लिए लाभ कमाने का ट्रैक रिकॉर्ड है, उन्हें अपने इश्यू की स्वतंत्र रूप से कीमत देने की अनुमति है। यह कीमतें जारीकर्ता द्वारा मुख्य प्रबंधक के साथ परामर्श करके निर्धारित की जाएंगी।
मौजूदा सूचीबद्ध कंपनियां: मौजूदा सूचीबद्ध कंपनियों को पहले 100 करोड़ पर 50%, अगले 100 करोड़ पर 40% यानी 200 करोड़ पर, अगले 100 करोड़ पर 30% यानी (300 करोड़) और शेष राशि राशि पर 15% के प्रमोटर योगदान के साथ बाजार का विस्तार करने के लिए स्वतंत्र रूप से नई पूंजी जुटाने की अनुमति है।

  • सार्वजनिक मुद्दे से पहले, सेबी को प्रॉस्पेक्टस का एक ड्राफ्ट दिया जाना चाहिए।
  • नई कंपनियों के शेयर को OTCEI या किसी अन्य स्टॉक एक्सचेंज के साथ सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।

निवेशकों के संरक्षण के लिए सेबी के दिशानिर्देश:
शेयर बाजार को विनियमित करने के अलावा, सेबी निवेशकों के हितों की रक्षा करने में भी शामिल है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, कुछ दिशानिर्देश नीचे सूचीबद्ध हैं:

नए मुद्दे: सेबी सार्वजनिक मामलों के लिए निष्पक्ष डिसक्लोजर की पेशकश के लिए एक विज्ञापन संहिता पेश करता है। साथ ही, इश्यू की लागत को कम करने के लिए, अंडरराइटिंग को वैकल्पिक बनाया गया है।
निवेशक शिक्षा: यह निवेशक शिक्षा को प्रोत्साहित करता है और इसलिए कुछ निवेशकों के संघों में निवेश किया है।
क्रेडिट रेटिंग: जो कंपनियां पब्लिक डिपॉजिट को बढ़ाने में शामिल हैं, उन्हें प्राधिकृत प्राधिकारी (authorized authority) द्वारा क्रेडिट रेटिंग से गुजरना होगा। यह संगठन की वित्तीय ताकत की पारदर्शिता देता है। क्रेडिट रेटिंग फर्मों में से कुछ हैं:
क्रिसिल
आईसीआरए
देखभाल आदि
सूचना का प्रकटीकरण: सेबी निष्पक्ष रूप से स्टॉक एक्सचेंज के बारे में पर्याप्त जानकारी और निवेशकों को निवेश के निर्णय लेने में मदद करता है।
शिकायतों के लिए व्यवस्था: बोर्ड निवेशकों की शिकायतों का खुलासा करने के लिए एक व्यवस्था करता है।
प्रमोटरों की जानकारी: प्रोमोटर्स के योगदान के बारे में स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए, जिसका नाम प्रॉस्पेक्टस में लिया गया है।
आवंटन के दौरान सेबी के प्रतिनिधि की उपस्थिति: किसी भी कंपनी के मुद्दे की देखरेख के मामले में, आवंटन प्रक्रिया के दौरान सेबी के प्रतिनिधि को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
निवेशक शिकायत प्रकोष्ठ: निवेशकों की शिकायतों से निपटने के लिए निवेशक शिकायत प्रकोष्ठ होना चाहिए।
परिश्रम प्रमाण पत्र संलग्न करना: निवेशकों की जवाबदेही बढ़ाने के लिए व्यापारी बैंकरों को प्रॉस्पेक्टस के साथ परिश्रम प्रमाण पत्र अटैच करना होगा। शेयर के मुद्दे की विस्तृत स्थिति जानने के लिए प्रमाण पत्र उपयोगी है। यह प्रमाण पत्र प्रॉस्पेक्टस में गलत विवरण के मामले को दर्ज करने में एक निवेशक के लिए सहायक है।
विज्ञापन कोड: यह एक विज्ञापन कोड प्रदान करता है जिसका पालन कंपनियों या निवेशकों को करना चाहिए।

सेबी अधिनियम क्या है (SEBI Regulation in Hindi)

सेबी कानून और विनियम सेबी एक्ट, 1992 के अनुसार लागू करता है। सभी कानूनों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए, जो भारत में शेयर बाजार और अन्य सिक्योरिटीज के साथ डायरेक्ट या इनडायरेक्ट रूप से जुड़े हुए हैं।

ये नियम सुनिश्चित करते हैं कि स्टॉक एक्सचेंज और अन्य सिक्योरिटीज पर सभी ट्रेड सुरक्षित और सही तरीके से किए जाते हैं।

यहाँ कुछ संक्षिप्त सेबी कानूनों और नियमों के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई है।

इनसाइडर ट्रेडिंग पर सेबी का नियम (SEBI Regulation for Insider Trading)
सेबी (इनसाइडर ट्रेडिंग का निषेध) रेगुलेशन, 2015 नए नियमों और प्रावधानों को प्रस्तुत करता है जो कि इनसाइडर द्वारा सिक्योरिटीज के ट्रेड को प्रतिबंधित करते हैं। साथ ही, यह कानूनी ढांचे को मजबूत करता है और इस प्रकार ट्रेड में अधिक पारदर्शिता और सुरक्षा प्रदान करता है।

LODR नियम: सेबी LODR (Listing Obligations and Disclosure Requirement), विनियमन भारत के स्टॉक एक्सचेंजों के साथ पंजीकृत सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा अनिवार्य अनुपालन से निपटने का प्रावधान प्रदान करता है।

ICDR नियम: सेबी ICDR (Issue of Capital and Disclosure Requirements) विनियमन 2009 में पेश किया गया था। यह भारत की सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा किए गए पूंजी और खुलासे से संबंधित मामले से निपटने के प्रावधान को नियंत्रित करता है।

यह विनियमन सूचीबद्ध कंपनियों और निवेशकों दोनों के लिए ट्रेड को सुरक्षित, सही और लाभकारी बनाने के लिए है।

सेबी SAST नियम: सेबी SAST (Substantial Acquisition of Shares and Takeovers) नियम, 2011 को स्टॉक और अधिग्रहण की कानूनी और रिकवरी से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए तैयार किया गया है।

सेबी हेल्पलाइन नंबर (Sebi Customer Care Number in Hindi)

सेबी ने निवेशकों के हितों को ध्यान में रखते हुए टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर जारी किया है। इसमें आम जनता टोल फ्री नंबर 1800 266 7575 या 1800 22 7575 पर कॉल कर के सिक्योरिटीज मार्केट से सम्बंधित प्रश्न पूछ सकती है।

यह टोल फ्री हेल्पलाइन सेवा पूरे भारत के निवेशकों के लिए उपलब्ध है। यह सेवा 8 भाषाओं में उपलब्ध है, जिसमें अंग्रेजी, हिंदी, मराठी, गुजराती, तमिल, बंगाली, तेलुगु और कन्नड़ शामिल है।

टोल फ्री हेल्पलाइन सेवा 9:00 बजे से 6:00 बजे (घोषित छुट्टियों को छोड़कर) सभी दिनों पर उपलब्ध है।

इसके अलावा, आप 26449199/40459188/40459199 पर भी संपर्क कर सकते हैं या sebi@sebi.gov.in पर ई-मेल भेज सकते हैं।

हेल्पलाइन नंबर पर उपलब्ध सेवाएं

निवेशकों को निम्नलिखित सेवाएं टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर पर उपलब्ध हैं।

कंपनियों का स्टेटस – आप लिस्टेड या बिना लिस्टेड, लिस्टिंग से हटाई गई कंपनियों के स्टेटस के बारे में जान सकते हैं।
आप किसी विलय हुए कंपनी का नाम जान सकते हैं।
किसी लिस्टेड कंपनी के रजिस्ट्रार और शेयर ट्रांसफर एजेंट का विवरण पूछ सकते हैं।
सेबी के विभिन्न पंजीकृत मध्यस्थों के नाम और पते पर विवरण और सूचना प्राप्त कर सकते हैं।
सेबी द्वारा की गई नियामक कार्रवाई की जानकारी के बारे में पूछ सकते हैं।
डिविडेंड, बोनस, राइट इश्यू आदि जैसे कॉर्पोरेट कार्रवाई के बारे में जानकारी ले सकते हैं।
सेबी के पास शिकायत कैसे दर्ज कर सकते हैं।
सेबी के पास दर्ज शिकायत की स्थिति को जान सकते हैं।

निष्कर्ष

sebi को ट्रेडिंग में निष्पक्षता और सुरक्षा प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया था। सेबी की स्थापना के बाद से ही, यह सुधार लाने के लिए नए कानूनों और नियमों का पेश कर रहा है।

यह स्टॉक मार्केट को अपग्रेड करता है और इसे ट्रेडिंग के लिए अधिक सुरक्षित और आदर्श बनाता है।

बीते वर्षों के दौरान ट्रेडिंग मार्केट में सबसे अच्छा बदलाव फिजिकल ट्रेडिंग के जगह इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग का आना है।

इसके अलावा, यह शेयर बाजार की नियामक प्रणाली को मजबूत करता है। यह भारतीय सिक्योरिटी मार्केट में मजबूती प्रदान करता है, जो ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म की ओर अधिक निवेशकों को आकर्षित करता है।

साथ ही, स्टॉक एक्सचेंज में शामिल व्यवसाय के नियमन में इसकी भूमिका ट्रेड में निवेशकों के हितों की रक्षा करती है।

अंत में, सेबी एक शक्तिशाली निकाय है जो स्टॉक एक्सचेंजों और पूंजी बाजार में धोखाधड़ी के जोखिमों को कम करता है।

आज हमने इस लेख के जरिए (SEBI) सेबी क्या है? सेबी के कार्य क्या है? What is SEBI in Hindi ,सेबी का फुल फॉर्म | Full Form of SEBI ,सेबी की संरचना (Structure of SEBI) आदि सभी के बारे मे जाना अगर आपको हमारी यह जानकारी अच्छी लगी तो हम कमेन्ट करके जरूर बताये ओर इससे जुड़ा या स्टॉक मार्केट से जुड़ा आपका कोई भी सवाल तो आप हमे कमेन्ट करके पूछ सकते है इसके साथ इस जानकारी को अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर करना न भूले धन्यवाद ।

सेबी का क्या मतलब है?

सेबी, सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया, एक नियामक संस्था है, जो सिक्योरिटीज मार्केट में स्टॉक के ट्रांजेक्शन को रेगुलेट करती है।

सेबी के वर्तमान अध्यक्ष

सेबी के अध्यक्ष श्री अजय त्यागी

सेबी का मुख्यालय कहां है

सेबी का मुख्यालय मुंबई मे स्थित है

sebi ka full form

Securities and Exchange Board of India

sebi act 1992 in hindi pdf

सेबी कानून और विनियम सेबी एक्ट, 1992 के अनुसार लागू करता है। सभी कानूनों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए, जो भारत में शेयर बाजार और अन्य सिक्योरिटीज के साथ डायरेक्ट या इनडायरेक्ट रूप से जुड़े हुए हैं।

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